आउटसोर्स से चहेतों की मौज
उत्तराखंड सरकार बेरोजगारी की समस्या को भले ही दूर कर पाने में सक्षम साबित न हो रही है लेकिन सरकार की ओर से अब एक और नई एजेंसी बनाई जा रही है कि आउटसोर्स से युवाओं की भर्ती करेगी। हालांकि इसमें कितना समय लगेगा यह अभी तय नहीं है। अभी तक उपनल के माध्यम से प्रदेश के विभिन्न विभागों में युवाओं को नियुक्तियां दी गयीं, जिन्हें लेकर कई विवाद भी होते रहे हैं। असल में उपनल का गठन पूर्व सैनिकों को सरकारी विभागों में संविदा या कांटे्रक्ट बेस पर नौकरी के लिए किया गया था, लेकिन राज्य बनने के बाद से उपनल को नेताओं एवं अधिकारियों ने अपने चहेतों को विभागों में एडजस्ट करने का माध्यम बना लिया। ऐसे लोगों को भी रख लिया गया जो कि न्यूनतम अर्हताएं तक नहीं रखते। सीधे तौर पर यह ऐसे युवाओं के अधिकारों का हनन था जो कि प्रतियोगी परीक्षाओं के माध्यम से सरकार नौकरी की प्रतीक्षा कर रहे थे। उत्तराखंड का गठन जब किया गया था तो यहां बेरोजगारों की लंबी-चौड़ी फौज सरकार को विरासत में मिली जो कि आज एक बड़ा रूप ले चुकी है। सरकारी विभागों में कर्मियों की आवश्यकता तो थी ही लिहाजा उपनल का गठन किया गया जिसके पीछे पूर्व सैनिकों की सेवाएं लेना था। आज प्रदेश के कई विभागों में उपनल के माध्यम से ऐसे लोगों को भी नियुक्तियां दी गयीं हैं जिनका सेना से दूर-दूर तक लेना-देना नहीं है। लंबे समय से विभिन्न पदों पर जमे इन कर्मियों ने अब नियमित किए जाने की मांग उठाई है जो कि सरकार के लिए सिरदर्द बन चुकी है। नियमानुसार इनको स्थायी नियुक्ति नहीं दी जा सकती, क्योंकि भर्ती की प्रक्रिया को दरकिनार किया गया है। नेताओं का जिसे मन हुआ उसे विभागों में लगा दिया, न तो शैक्षिक योग्यता और न दूसरे मापदंड। प्रदेश में यदि उपनल के माध्यम से लगाए कर्मियों की जांच कर ली जाए तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आ सकते हैं। सरकार व्यापक तौर पर राज्य के युवाओं को नौकरियां देने में नाकामयाब रही है। उपनल के माध्यम से भी नौकरियां दिए जाने में अपने खास लोगों को ही लाभ पहुुंचाया गया। सरकार की योजना अब नई प्लेसमेंट एजेंसी खोलने की है, लेकिन यह एजेंसी भी मुक्त भाव से काम कर सकेगी, इसमें संदेह ही है। उपनल का हाल हर किसी ने देखा है। सैनिकों के लिए आरक्षित होने के बाद भी यहां सैनिकों को अधिक तवज्जो नहीं दी जाती और ऐसे लोगों को उपनल का लाभ दिया गया जो कि इसके पात्र ही नहीं हैं। बेरोजगारी दूर करने के लिए सरकार के पास कोई ठोस एजेंडा नहीं है, सिवाए संविदा एवं ठेका पद्घति पर काम कराने के। सरकार का राजकोष खाली है। नियमित एवं स्थायी कर्मचारियों का वेतन निकालने में ही सरकार को बाजार से मोटा ऋण लेना पड़ रहा है। कर्मचारियों के लिए धन कहां से जुटाया जाए, यह बेरोजगारी से भी बड़ी चुनौती है। उपनल के इतर नई प्लेसमेंट एजेंसी कारगर तभी साबित हो सकती है, जब सरकार का राजकोष भरा हुआ हो, संसाधनों से राजस्व प्राप्त हो रहा हो। लेकिन यहां स्थिति बिलकुल उलट है। सरकार के लिए विभागों को चलाना मुश्किल हो रहा है और ऐसे हालातों में नई भर्तियां करना एक चुनौती है। नई प्लेसमेंट एजेंसी चलानी है तो इसके लिए नियम कानून भी तय करने होंगे। भर्ती का पैमाना चमचागिरी, भाई-भतीजावाद नहीं बल्कि योग्यता होनी चाहिए।