अब बातें नहीं परिणाम चाहिए
केदारनाथ में होने वाले पुननिर्माण की निगरानी खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर रहे हैं। केदारनाथ में होने वाले प्रमुख आयोजनों में उनकी उपस्थिति खुद ही उनकी इस इच्छाशक्ति को दर्शाती है। केदारनाथ में पांच वर्ष पूर्व आर्ई प्राकृतिक आपदा के बाद की इस जलप्रलय की विभिषिका ने अब तक यहां के लोगों का साथ नहीं छोड़ा है। आज भी ऐसे कई गांव पुनर्वास की प्रतीक्षा कर रहे हैं जहां सरकार ने विकास कार्यो का दावा तो किया लेकिन हालात आज भी जस के तस ही बने हुए हैं। विकास कार्य की बात तो दूर अधिकारियों और निर्माण एजेंसियों पर वित्तीय धांधलियों के कारण यहां होने वाले विकास कार्य विवादों के घेरे में ही रहे हैं। आपदा के बाद भी केदारघाटी में विकास के नाम पर महज खोखले दावे ही होते रहे। इधर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद केदारनाथ मे विकास कार्यो को लेकर आगे हैं। साथ ही चार धाम यात्रा के लिए ऑल वेदर रोड का कार्य भी केंद्र सरकार के खास प्रयासों से शुरू किया गया है। असल में यह काम तो राज्य सरकार को करना चाहिए था लेकिन आपदा के नाम पर सिवाए राजनीति एवं झूठी बातों को ही प्रचारित किया गया। हकीकत यह है कि आज भी चार धाम यात्रा मार्ग पर सड़कों की हालत ऐसी नहीं है कि यहां शीतकालीन यात्रा चलाई जा सके। अधिकांश सड़कों की स्थिति खराब है जबकि पर्यटक स्थलों पर बिजली पानी जैसी बुनियादी सुविधाएं तक उपलब्ध नहीं हैं। केदारघाटी के लिए यह चिंता की ही बात थी कि उत्तराखंड की सरकार एवं अधिकारी आपदा के तत्काल बाद भी संजीदा नहीं हुए और राहत कार्यों के नाम पर मौजमस्ती काटते रहे। तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने भी अधिकारियों की इस मौजमस्ती का समर्थन करते हुए अधिकारियों को क्लीन चिट दे दी। अब तक स्पष्ट हो चुका था कि आपदा राहत कार्यों के नाम पर केवल और केवल लीपापोती ही की जा रही है। पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा एवं मुख्यमंत्री हरीश रावत गुड गर्वनेंस के साथ ही निर्माण कार्यो में गुणवत्ता बरतने एवं पारदर्शिता की बात करते रहे लेकिन धरातल पर निर्माण कार्यो की क्या स्थिति थी यह खुद केदारघाटी के लोग झेलते रहे। यह किसी से छिपा नहीं है। राहत के नाम पर अफसरों की वित्तीय अनियमितताएं एवं आधे-अधूरे निर्माण कार्य ही किए । डेढ आपदा के साढे चार साल से अधिक का समय बीत जाने के बाद भी आपदा पीड़ित क्षेत्रा के लोगों का जीवन पटरी पर न आ पाना खुद ही इस बात की पुष्टि करता है कि सरकार और ब्यूरोके्र सी ने क्षेत्रीय विकास को लेकर कितनी गंभीरता बरती है। प्रधानमंत्री सक्रिय हुए तो उत्तराखंड सरकार भी अब एक्शन मोड में नजर आ रही है। उम्मीद है कि अगले सीजन में श्रद्घालुआें को केदारघाटी की छटा कुछ अलग नजर आएगी।